30 जुलाई 2025 को भारत ने अंतरिक्ष की दुनिया में एक और ऐतिहासिक कदम बढ़ाया है। आज शाम 5:40 बजे आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से ISRO और NASA का संयुक्त मिशन NISAR (NASA-ISRO Synthetic Aperture Radar) सफलतापूर्वक लॉन्च किया गया। यह मिशन न केवल तकनीकी दृष्टिकोण से अहम है, बल्कि यह दुनिया का अब तक का सबसे महंगा अर्थ इमेजिंग सैटेलाइट भी बन गया है।
क्या है NISAR मिशन?
NISAR एक संयुक्त अंतरिक्ष परियोजना है, जिसे भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) और अमेरिकी स्पेस एजेंसी NASA ने मिलकर तैयार किया है। इस मिशन का मुख्य उद्देश्य धरती की सतह में हो रहे बदलावों का अध्ययन करना है। इसमें जंगलों की कटाई, बर्फ की परतों का पिघलना, भूकंपीय हलचलें, मिट्टी की दरारें, फसल की स्थिति और अन्य भौगोलिक परिवर्तन शामिल हैं।
इस मिशन को पहले 2024 में लॉन्च किया जाना था, लेकिन तकनीकी खामी की वजह से इसमें देरी हुई। खास तौर पर सैटेलाइट के विशाल 12-मीटर रडार एंटीना में आई गड़बड़ी ने इसे एक साल के लिए टाल दिया था।
क्यों खास है NISAR?
NISAR सैटेलाइट दुनिया का पहला ऐसा रडार इमेजिंग सैटेलाइट है जिसमें डबल रडार सिस्टम लगा है – L-बैंड रडार (NASA द्वारा निर्मित) और S-बैंड रडार (ISRO द्वारा)। इस डबल-फ्रीक्वेंसी सिस्टम की मदद से यह सैटेलाइट धरती की सतह की बहुत उच्च गुणवत्ता वाली इमेज तैयार करेगा।
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L-बैंड रडार: यह घने जंगल, बर्फ और मिट्टी के नीचे की परतों का विश्लेषण करेगा।
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S-बैंड रडार: इसका उपयोग सतही संरचनाओं जैसे फसल, मिट्टी की दरारों और जल संचयन की निगरानी के लिए किया जाएगा।
इस सैटेलाइट की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह 12 मीटर का एंटीना लेकर उड़ान भरता है, जो 240 किलोमीटर की चौड़ाई तक की इमेजिंग कर सकता है।
खर्च और तकनीकी योगदान
NISAR मिशन पर कुल 1.5 बिलियन डॉलर (करीब 13,000 करोड़ रुपये) की लागत आई है। इसे दुनिया का सबसे महंगा अर्थ इमेजिंग सैटेलाइट माना जा रहा है। इसरो ने मिशन में लगभग 788 करोड़ रुपये का योगदान दिया है। ISRO ने सैटेलाइट बस, S-बैंड रडार, लॉन्च व्हीकल (GSLV-F16) और अन्य सेवाएं दी हैं।
वहीं NASA ने L-बैंड रडार, GPS रिसीवर, हाई-डेटा रेट कम्युनिकेशन सिस्टम और सॉलिड स्टेट रिकॉर्डर प्रदान किया है।
मिशन की अवधि और उपयोगिता
NISAR सैटेलाइट को धरती से 747 किलोमीटर ऊपर लो-अर्थ ऑर्बिट (LEO) में स्थापित किया गया है। यह कम से कम 3 साल तक लगातार काम करेगा। मिशन का प्राथमिक उद्देश्य जलवायु परिवर्तन, प्राकृतिक आपदाओं की निगरानी और पृथ्वी की सतह पर होने वाले सूक्ष्म परिवर्तनों को ट्रैक करना है।
सैटेलाइट का डेटा वैज्ञानिकों और पर्यावरण संस्थानों के लिए बेहद उपयोगी साबित होगा। इससे समय रहते आपदाओं की भविष्यवाणी और फसल प्रबंधन जैसे क्षेत्रों में सहायता मिलेगी।
NISAR से भारत को क्या लाभ?
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जलवायु निगरानी: NISAR के जरिए भारत अपने पर्यावरण संरक्षण और जलवायु परिवर्तन से निपटने की रणनीतियों को और बेहतर बना पाएगा।
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आपदा प्रबंधन: भूकंप, बाढ़ और भूस्खलन जैसी आपदाओं की पहले से पहचान संभव होगी।
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कृषि सुधार: फसलों की स्थिति पर निगरानी से किसानों को सटीक सलाह मिल सकेगी।
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ग्लोबल साझेदारी: यह मिशन भारत की अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक सहयोग की क्षमता को दर्शाता है।
निष्कर्ष
NISAR मिशन भारत और अमेरिका के बीच तकनीकी सहयोग की एक बेहतरीन मिसाल है। यह मिशन न केवल वैज्ञानिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह पृथ्वी के बदलते स्वरूप को समझने में भी एक क्रांतिकारी कदम है। आज का दिन भारत के अंतरिक्ष इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज हो गया है। ISRO और NASA की यह साझेदारी भविष्य में और भी बड़े मिशनों की राह खोल सकती है।