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हिंदू विरोधी पूर्वाग्रह से निपटने के लिए स्कॉटलैंड ने उठाया बड़ा कदम, संसद में पेश किया ये प्रस्ताव

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Posted On:Saturday, April 19, 2025

सिर्फ भारत में ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी हिंदू समुदाय को पूर्वाग्रहों, भेदभाव और नफरत का सामना करना पड़ रहा है। हाल ही में स्कॉटलैंड से सामने आई एक रिपोर्ट और उस पर आधारित संसदीय प्रस्ताव इस गंभीर स्थिति को रेखांकित करते हैं। ग्लासगो स्थित गांधीवादी संस्था ‘गांधीयन पीस सोसाइटी’ द्वारा जारी एक रिपोर्ट में बताया गया है कि स्कॉटलैंड के हिंदू समुदाय को नस्लीय और धार्मिक भेदभाव का सामना करना पड़ रहा है। इस रिपोर्ट के आधार पर स्कॉटलैंड की संसद में एक प्रस्ताव भी पेश किया गया, जिसमें हिंदूफोबिया और हिंदू विरोधी मानसिकता से सख्ती से निपटने की मांग की गई है।

सांसद ऐश रेगन ने उठाई आवाज

स्कॉटलैंड की एडिनबर्ग ईस्टर्न सीट से अल्बा पार्टी की सांसद ऐश रेगन ने संसद में यह प्रस्ताव पेश किया। उन्होंने ग्लासगो की संस्था की उस रिपोर्ट की सराहना की, जिसमें हिंदुओं के साथ हो रहे भेदभाव और उन्हें समाज में हाशिये पर धकेले जाने की घटनाओं का गहन अध्ययन किया गया है। रेगन का यह प्रस्ताव स्कॉटलैंड में अल्पसंख्यक समुदायों के साथ एकजुटता दिखाने का प्रयास है। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि हिंदूफोबिया और किसी भी प्रकार की धार्मिक असहिष्णुता को सहन नहीं किया जाना चाहिए।

गांधीयन पीस सोसाइटी की रिपोर्ट का महत्व

गांधीयन पीस सोसाइटी ने फरवरी में स्कॉटिश संसद की समिति के समक्ष ‘स्कॉटलैंड में हिंदूफोबिया’ नामक रिपोर्ट प्रस्तुत की थी। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि स्कॉटलैंड के हिंदू समुदाय के लोग लगातार भेदभाव, धार्मिक उपेक्षा और सामाजिक बहिष्कार का सामना कर रहे हैं। यह अध्ययन इस विषय पर स्कॉटलैंड का पहला व्यापक शोध है, जो वहां के हिंदू समुदाय की वास्तविकता को सामने लाता है। संस्था का उद्देश्य शांति, अहिंसा और महात्मा गांधी के सिद्धांतों को बढ़ावा देना है, और यही सोच इस रिपोर्ट के केंद्र में भी रही।

पूर्वाग्रह और भेदभाव के उदाहरण

रिपोर्ट के अनुसार, स्कॉटलैंड में हिंदू बच्चों को स्कूलों में बदतमीजी और मज़ाक का सामना करना पड़ता है, वहीं युवा और व्यस्क वर्ग को कार्यस्थल पर पहचान के आधार पर आंका जाता है। कई हिंदू परिवारों ने बताया कि उन्हें अपने धार्मिक पर्वों और रीति-रिवाजों को मनाने में कठिनाई होती है क्योंकि समाज का एक बड़ा वर्ग उनके सांस्कृतिक मूल्यों को नहीं समझता या स्वीकार नहीं करता। सोशल मीडिया पर हिंदू धर्म के प्रतीकों और देवी-देवताओं को लेकर की जा रही आपत्तिजनक टिप्पणियाँ भी चिंता का कारण हैं।

संसद में रखे गए प्रस्ताव का उद्देश्य

ऐश रेगन द्वारा पेश किया गया प्रस्ताव मात्र एक औपचारिक दस्तावेज नहीं है, बल्कि यह स्कॉटलैंड की संसद को इस समस्या पर ध्यान देने की दिशा में पहला कदम माना जा रहा है। इस प्रस्ताव का मकसद है –

  1. स्कॉटलैंड के विभिन्न समुदायों में धार्मिक सहिष्णुता और समावेशिता को बढ़ावा देना,

  2. हिंदूफोबिया जैसी विचारधाराओं के खिलाफ नीतिगत कार्यवाही की शुरुआत करना,

  3. शिक्षा संस्थानों और कार्यस्थलों में समानता और विविधता पर आधारित वातावरण सुनिश्चित करना,

  4. और सबसे महत्वपूर्ण, हिंदू समुदाय के योगदान को सम्मान और पहचान देना।

भारत और वैश्विक स्तर पर प्रतिक्रिया

इस रिपोर्ट और संसदीय प्रस्ताव की खबर भारत में भी पहुंच चुकी है और इसे काफी सराहना मिली है। भारतीय विदेश मंत्रालय ने इस कदम को सकारात्मक बताते हुए उम्मीद जताई कि अन्य देशों में भी हिंदू विरोधी मानसिकता के खिलाफ इस तरह के प्रयास होंगे। सोशल मीडिया पर भारतीय प्रवासी समुदाय और विभिन्न धार्मिक संगठनों ने स्कॉटलैंड सरकार के इस प्रयास की सराहना की है।

हिंदूफोबिया – एक बढ़ता वैश्विक खतरा

यह कोई पहली बार नहीं है जब विदेशों में हिंदू समुदाय को भेदभाव का सामना करना पड़ा हो। अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और ब्रिटेन जैसे देशों में भी समय-समय पर हिंदू मंदिरों पर हमले, धार्मिक स्थलों को अपवित्र करने और सोशल मीडिया पर अपमानजनक टिप्पणियों की घटनाएँ सामने आती रही हैं। यह घटनाएँ वैश्विक स्तर पर चिंता का विषय बन चुकी हैं। हिंदूफोबिया का स्वरूप केवल सामाजिक नहीं, बल्कि राजनैतिक और संस्थागत भी होता जा रहा है। ऐसे में स्कॉटलैंड का यह कदम बाकी देशों के लिए भी उदाहरण बन सकता है।

निष्कर्ष

स्कॉटलैंड की संसद में हिंदूफोबिया के खिलाफ पेश किया गया प्रस्ताव एक स्वागत योग्य पहल है। यह न सिर्फ स्कॉटलैंड में रहने वाले हिंदुओं को न्याय दिलाने की दिशा में एक मजबूत कदम है, बल्कि यह पूरे विश्व में धार्मिक सहिष्णुता और विविधता के महत्व को भी रेखांकित करता है। आज के समय में जब धर्म और संस्कृति के नाम पर नफरत फैलाने वाली ताकतें बढ़ रही हैं, तब ऐसे निर्णय आशा और भरोसे की किरण बनकर उभरते हैं। अब यह अन्य लोकतांत्रिक देशों की जिम्मेदारी है कि वे भी इस प्रकार की असहिष्णुता के खिलाफ सख्त कदम उठाएं और सभी समुदायों को समान सम्मान और अधिकार दें।


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