हर साल 12 मई को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ‘इंटरनेशनल नर्स डे’ मनाया जाता है। यह दिन केवल एक उत्सव नहीं, बल्कि उन लाखों नर्सों की मेहनत, समर्पण और निस्वार्थ सेवा को सम्मान देने का अवसर है, जो मानव जीवन को बचाने में दिन-रात जुटी रहती हैं। इस दिन को दुनिया की पहली पेशेवर नर्स फ्लोरेंस नाइटिंगेल की जयंती के रूप में मनाया जाता है। उन्होंने आधुनिक नर्सिंग की नींव रखी थी और आज भी उनके योगदान को याद किया जाता है।
फ्लोरेंस नाइटिंगेल: आधुनिक नर्सिंग की जननी
फ्लोरेंस नाइटिंगेल का जन्म 12 मई 1820 को इंग्लैंड में हुआ था। उन्होंने क्राइमियन युद्ध (1853-1856) के दौरान ब्रिटिश सैनिकों की देखभाल करके न केवल हजारों की जान बचाई, बल्कि नर्सिंग को एक सम्मानजनक पेशा भी बनाया। उनकी सोच, अनुशासन और वैज्ञानिक दृष्टिकोण ने नर्सिंग के क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव लाया।
उनके सम्मान में 1974 से हर साल 12 मई को इंटरनेशनल नर्स डे मनाया जाने लगा। इस दिन स्वास्थ्य क्षेत्र में नर्सों की भूमिका को सराहा जाता है।
भारत में नर्सिंग का इतिहास
भारत में नर्सिंग का इतिहास काफी पुराना है, लेकिन इसे औपचारिक रूप से ब्रिटिश काल के दौरान एक पेशे के रूप में पहचाना गया। शुरुआती दौर में अधिकांश नर्सें ब्रिटिश या एंग्लो-इंडियन हुआ करती थीं, क्योंकि भारतीय महिलाओं को सामाजिक बंधनों के कारण इस पेशे में आने की अनुमति नहीं थी।
पहली भारतीय नर्स: बाई काशीबाई गनपत
इतिहास में दर्ज नामों में बाई काशीबाई गनपत को भारत की प्रथम नर्स माना जाता है। वे 18वीं सदी में महाराष्ट्र में जन्मी थीं और उस दौर में भी उन्होंने रोगियों की सेवा करना शुरू कर दिया था, जब नर्सिंग को कोई पेशा नहीं माना जाता था। हालांकि, उन्होंने कोई औपचारिक शिक्षा प्राप्त नहीं की थी, फिर भी बुबोनिक प्लेग जैसी महामारी के दौरान उन्होंने लोगों की सेवा कर एक उदाहरण पेश किया।
सिस्टर राधाबाई सुब्बारायन: भारत की पहली प्रशिक्षित नर्स
भारत में नर्सिंग को एक पेशेवर स्वरूप देने में सिस्टर राधाबाई सुब्बारायन की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। उन्हें आजादी के बाद भारत की पहली प्रशिक्षित नर्स माना जाता है। उन्होंने नर्सिंग कोर्स कर इस पेशे में कदम रखा और देश में नर्सिंग की शिक्षा और कार्य संस्कृति को मजबूत करने में बड़ा योगदान दिया।
उन्होंने न सिर्फ मरीजों की देखभाल की, बल्कि देश की अन्य महिलाओं को भी इस क्षेत्र में आने के लिए प्रेरित किया। राधाबाई की सेवा भावना और समर्पण आज की पीढ़ी की नर्सों के लिए प्रेरणा का स्रोत है।
भारत में नर्सिंग की प्रगति
1947 में भारत को आजादी मिलने के बाद, नर्सिंग क्षेत्र में बड़े सुधार किए गए। उसी वर्ष इंडियन नर्सिंग काउंसिल (INC) की स्थापना हुई। इस संस्था का उद्देश्य देश में नर्सिंग शिक्षा की गुणवत्ता सुनिश्चित करना और महिलाओं को इस पेशे में लाने के लिए प्रोत्साहित करना था।
सरकार ने महिलाओं के लिए स्कॉलरशिप, ट्रेनिंग सेंटर्स, और नर्सिंग स्कूल शुरू किए। समय के साथ भारत में नर्सिंग एक संगठित और सम्मानजनक पेशा बन गया। आज भारत में लाखों प्रशिक्षित नर्सें सरकारी और निजी अस्पतालों में सेवाएं दे रही हैं।
कोविड काल में नर्सों की भूमिका
कोरोना महामारी के दौरान नर्सों की भूमिका ने एक बार फिर दुनिया को उनकी अहमियत का अहसास दिलाया। फ्रंटलाइन वॉरियर्स के रूप में काम कर रहीं नर्सों ने कई बार अपनी जान की परवाह किए बिना मरीजों की सेवा की। वे डॉक्टरों के आदेश का पालन करने के साथ-साथ मरीजों की मानसिक और भावनात्मक स्थिति को संभालने में भी सक्रिय रहीं।
कई नर्सों ने महामारी के दौरान अपने परिवार से दूर रहकर लगातार ड्यूटी की, जिससे यह स्पष्ट हुआ कि यह पेशा केवल काम नहीं, बल्कि एक मिशन है।
आज की चुनौतियाँ
हालांकि समय के साथ नर्सिंग को एक सम्मान मिला है, फिर भी यह पेशा आज भी कई चुनौतियों से जूझ रहा है। नर्सों को अपेक्षाकृत कम वेतन, अत्यधिक कार्यभार, और सुरक्षा की कमी का सामना करना पड़ता है। ग्रामीण क्षेत्रों में नर्सों की कमी, शिक्षा की गुणवत्ता और संसाधनों की अनुपलब्धता भी इस क्षेत्र के विकास में रुकावटें हैं।
इन्हें हल करने के लिए सरकार और समाज दोनों को मिलकर प्रयास करने होंगे ताकि नर्सों को उनका हक, सम्मान और सुरक्षित कार्यस्थल मिल सके।
निष्कर्ष
इंटरनेशनल नर्स डे केवल नर्सों को बधाई देने का दिन नहीं, बल्कि उनके अद्वितीय योगदान को याद करने का दिन है। चाहे वो बाई काशीबाई गनपत हों, जिन्होंने बिना शिक्षा के सेवा की मिसाल पेश की, या सिस्टर राधाबाई सुब्बारायन, जिन्होंने इस पेशे को आधुनिक रूप दिया, सभी ने भारत में नर्सिंग को मजबूत आधार दिया है।
आज जब हम इस दिन को मना रहे हैं, तो हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि नर्स केवल ‘अस्पताल में काम करने वाली महिला’ नहीं, बल्कि जीवन की रक्षक, संवेदना की प्रतीक और सेवा की मिसाल होती है।