अहमदाबाद न्यूज डेस्क: 2025 की गणेश चतुर्थी इस बार सिर्फ भक्ति और उत्सव तक सीमित नहीं है, बल्कि यह पर्यावरण संरक्षण और टिकाऊ आध्यात्मिकता का संदेश भी दे रही है। अहमदाबाद से लेकर मुंबई और नागपुर तक, गणपति बप्पा के स्वागत में इस बार मूर्तियों की सुंदरता के साथ-साथ उनकी पर्यावरण मित्रता पर भी जोर दिया जा रहा है। भक्त अब यह सोच रहे हैं कि उनकी श्रद्धा प्रकृति को नुकसान पहुंचाए बिना कैसे प्रकट हो सकती है।
अहमदाबाद नगर निगम ने इस दिशा में बड़ा कदम उठाया है। गाय के गोबर और मिट्टी से बनी करीब 4000 गणेश मूर्तियां तैयार की गई हैं, जिनमें आवारा मवेशियों के गोबर का पुनः उपयोग किया गया है। इससे न केवल प्रदूषण कम होगा बल्कि गरीब मूर्तिकारों को रोजगार भी मिला है। नगर आयुक्त बंछानिधि पाणि के अनुसार, POP मूर्तियां जहां जल और पर्यावरण को नुकसान पहुंचाती हैं, वहीं गोबर-मिट्टी की मूर्तियां पूरी तरह प्राकृतिक रूप से विघटित हो जाती हैं और पवित्रता भी बनाए रखती हैं। ₹300-₹500 की लागत में बनने वाली ये मूर्तियां अब एक ‘ईको-रिवोल्यूशन’ का प्रतीक बन गई हैं।
नागपुर का ऐतिहासिक चितर ओली बाज़ार भी इस ईको-वेव का हिस्सा है, लेकिन यहां चुनौती अलग है। भोंसले काल से मिट्टी की मूर्तियां बनाने वाले कारीगर अब सस्ती POP मूर्तियों के मुकाबले संघर्ष कर रहे हैं। उनके लिए मिट्टी की मूर्तियां सिर्फ एक कला नहीं, बल्कि आस्था की आत्मा हैं। वे मानते हैं कि हाथ से गढ़ी मूर्तियों में भावनाओं की सच्ची अभिव्यक्ति होती है, जिसे मशीन से बनी POP मूर्तियां कभी नहीं दे सकतीं।
मुंबई में ‘पेपर गणपति’ की लहर तेज हो रही है। करीब एक दशक पहले शुरू हुई यह पहल अब शहरों में Urban Eco-Spiritual Movement बन चुकी है। ये मूर्तियां हल्की, साफ, पूरी तरह रीसायक्लेबल और पानी को प्रदूषित न करने वाली होती हैं। शहरी भक्त इन्हें तेजी से अपना रहे हैं क्योंकि यह न केवल श्रद्धा का प्रतीक हैं, बल्कि प्रकृति के प्रति जिम्मेदारी का भी। इस तरह, 2025 की गणेश चतुर्थी एक नई दिशा में बढ़ रही है—जहां भक्ति और पर्यावरण एक साथ कदमताल कर रहे हैं।