अहमदाबाद न्यूज डेस्क: दिवाली के मौके पर जहां अधिकांश लोग अपने परिवार के साथ त्योहार की खुशियाँ मनाते हैं, वहीं कई बुजुर्गों के लिए यह समय अकेलेपन और यादों का एहसास लेकर आता है। अहमदाबाद के जीवन संध्या वृद्धाश्रम में दिव्य भास्कर की टीम ने बुजुर्गों से मिलकर उनकी पीड़ा जानी। यहाँ कई बुजुर्गों को उम्मीद थी कि उनके परिवार दिवाली पर उनसे मिलने आएंगे, लेकिन ज्यादातर के लिए यह सिर्फ इंतजार ही रहा।
जितेंद्रभाई शाह ने बताया कि उनके बेटे 27 सालों से उनसे अलग हैं और अब वे अपने नए परिवार के साथ जीवन बिता रहे हैं। उनकी कई कोशिशों के बावजूद, किसी ने दिवाली पर उनसे मिलने या फोन करने की जहमत नहीं उठाई। वहीं 83 वर्षीय हर्षदभाई, जो हाल ही में वृद्धाश्रम आए हैं, अपने दो बेटों की बहुत याद करते हैं, लेकिन कहते हैं कि जो भाग्य में लिखा है, वही होता है। विशाखाबेन दवे ने बताया कि बहू-बेटे के झगड़े के कारण उन्होंने वृद्धाश्रम आना ही बेहतर समझा, और अब बेटी व दामाद के साथ ही खुश हैं, जबकि बेटे-बहू उनसे पूरी तरह से कट गए हैं।
नटवरभाई, जो चार महीने पहले आए हैं, पहली बार इतने बड़े परिवार के साथ दिवाली मना रहे हैं। उन्होंने कहा कि अब वे अपने नए परिवार के साथ “जंबो दिवाली” का आनंद ले रहे हैं। जीवन संध्या की मैनेजिंग ट्रस्टी डिंपलबेन ने बताया कि वृद्धाश्रम में सभी सुविधाएं उपलब्ध हैं, लेकिन परिवार के बिना बुजुर्गों को दिवाली जैसे त्योहारों में अकेलापन महसूस होता है।
यह समय उन माता-पिता की याद दिलाता है जिन्होंने अपने बच्चों को हर छोटी-बड़ी खुशी देने के लिए जीवन में मेहनत की। उम्र के इस पड़ाव पर बुजुर्गों को अपनों के प्यार और साथ की जरूरत होती है, जो कोई सुविधा या आराम नहीं दे सकता। हमारी प्रार्थना है कि वे अपने घरों और अपने परिवार के पास लौटकर त्योहार की खुशियाँ फिर से जी सकें।