अहमदाबाद न्यूज डेस्क: 12 जून को अहमदाबाद से उड़ान भरते ही क्रैश हुए एअर इंडिया के बोइंग 787-8 ड्रीमलाइनर विमान के ब्लैक बॉक्स को अमेरिका भेजा जाएगा। हादसे के अगले दिन ही यह ब्लैक बॉक्स बरामद कर लिया गया था, लेकिन उसमें लगी आग के कारण यह बुरी तरह से क्षतिग्रस्त हो चुका है। भारत में ऐसी कोई लैब नहीं है जहां इतने डैमेज ब्लैक बॉक्स से डेटा निकाला जा सके, इसलिए इसे अमेरिका की एनटीएसबी (नेशनल ट्रांसपोर्टेशन सेफ्टी बोर्ड) लैब में भेजने का फैसला लिया गया है।
इस विमान दुर्घटना में 270 लोगों की मौत हुई थी, जिनमें से 241 यात्री फ्लाइट AI-171 में सवार थे और एक यात्री ही जिंदा बच पाया। हादसे के बाद ब्लैक बॉक्स के दो अहम हिस्से—कॉकपिट वॉयस रिकॉर्डर (CVR) और फ्लाइट डेटा रिकॉर्डर (FDR)—हीट और आग से बुरी तरह डैमेज हो गए। अब इनकी जांच और डेटा रिकवरी के लिए अमेरिकी लैब की मदद ली जा रही है। इसके साथ सरकारी अफसर भी अमेरिका जाएंगे ताकि डेटा की सुरक्षा और गोपनीयता बनी रहे।
ब्लैक बॉक्स को लेकर कई लोगों के मन में जिज्ञासाएं होती हैं। सबसे पहले तो इसका नाम 'ब्लैक बॉक्स' होने के पीछे दो प्रमुख मान्यताएं हैं—एक, पहले इसके अंदरूनी हिस्से का रंग काला होता था, और दूसरी मान्यता ये है कि हादसों के बाद जलकर इसका रंग काला हो जाता है, इसीलिए इसे ब्लैक बॉक्स कहा जाता है। हालांकि असल में यह चमकीले नारंगी रंग का होता है ताकि हादसे के बाद मलबे में आसानी से मिल सके।
ब्लैक बॉक्स को बेहद सुरक्षित हिस्से यानी विमान की टेल सेक्शन में लगाया जाता है, जो सबसे अधिक सुरक्षित माना जाता है। यह टाइटेनियम या स्टेनलेस स्टील से बना होता है और 1100°C तक की गर्मी और समुद्र में 14,000 फीट गहराई तक का दबाव सह सकता है। कुछ मामलों में ब्लैक बॉक्स तुरंत मिल जाता है, लेकिन कई बार इसमें सालों लग जाते हैं। भारत में अब दिल्ली में ब्लैक बॉक्स जांचने की आधुनिक लैब बनाई गई है, लेकिन मौजूदा स्थिति में अमेरिका भेजना ही एकमात्र विकल्प था।