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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने लिव इन रिलेशनशिप पर कहा, शादी के रिश्ते में जो सुरक्षा है, वो लिव इन में नहीं, जानिए पूरा मामला

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Posted On:Saturday, September 2, 2023

मुंबई, 2 सितम्बर, (न्यूज़ हेल्पलाइन)। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने लिव इन रिलेशनशिप पर टिप्पणी की। कोर्ट ने कहा कि जानवरों की तरह हर मौसम में पार्टनर बदलने का कॉन्सेप्ट एक सभ्य और स्वस्थ समाज की निशानी नहीं हो सकता। व्यक्ति को शादी में जो सुरक्षा, सामाजिक स्वीकृति और ठहराव मिलता है, वह कभी भी लिव-इन रिलेशनशिप में नहीं मिल सकता। शादीशुदा लिव इन पार्टनर से रेप करने के आरोपी व्यक्ति को जमानत देते हुए जस्टिस सिद्धार्थ की सिंगल बेंच ने कहा कि ऊपरी तौर पर लिव-इन का रिश्ता बहुत आकर्षक लगता है, युवाओं को लुभाता है, लेकिन समय बीतने के साथ उन्हें एहसास होता है कि इस रिश्ते की कोई सामाजिक स्वीकृति नहीं है। इससे युवाओं में हताशा बढ़ने लगती है।

दरअसल, सहारनपुर के रहने वाले अदनान पर उसकी लिव-इन पार्टनर ने रेप का आरोप लगाया था। दोनों एक साल तक लिव-इन रिलेशनशिप में रहे और इस दौरान लड़की प्रेग्नेंट हो गई। इसे लेकर जज ने कहा कि देश में शादी के इंस्टिट्यूशन को खत्म करने के लिए सुनियोजित कोशिशें हो रही हैं। वहीं, कोर्ट ने अदनान को जमानत देने के अपने फैसले में जेलों में भीड़भाड़, आरोपी के केस को खत्म करने का अधिकार और हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के दिए फैसलों का भी जिक्र किया। इसके अलावा ये भी कहा कि टीवी सीरियल, वेब सीरीज और फिल्में देखकर युवा लिव-इन रिलेशनशिप की ओर आकर्षित होते हैं। फिल्में और टीवी सीरियल एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर और इस तरह के रिश्तों को बढ़ाने और समाज में गंदगी फैलाने का काम कर रहे हैं।

कोर्ट ने कहा कि लिव इन रिलेशनशिप को तभी सामान्य माना जा सकता है, जब शादी का संस्थान पूरी तरह प्रचलन से बाहर हो जाए, जैसे कई तथाकथित विकसित देशों में शादी इंस्टिट्यूशन को बचाना मुश्किल हो गया है। हम भी उस राह पर जा रहे हैं, जहां भविष्य में हमारे लिए बड़ी परेशानी खड़ी हो सकती है। अपने पति या पत्नी से बेवफाई करके आजादी से लिव-इन रिलेशनशिप में रहने को प्रोग्रेसिव सोसाइटी की निशानी बताया जा रहा है। ऐसी बातों से युवा आकर्षित होते हैं, लेकिन वे इस बात से अनजान होते हैं कि आगे जाकर इसका क्या नतीजा होगा।

कोर्ट के मुताबिक, ऐसा इंसान जिसके अपने ही परिवार से अच्छे संबंध नहीं हैं, वो देश की उन्नति में योगदान नहीं दे सकता। ऐसे पुरुष/महिला के पास कोई आधार नहीं होता। एक रिश्ते से दूसरे रिश्ते पर जंप करने से जीवन में संतोष नहीं मिलता। शादी के संस्थान में जो सुरक्षा, सामाजिक स्वीकृति और ठहराव मिलता है, वह कभी भी लिव-इन रिलेशनशिप में नहीं मिल सकता। ऐसे रिश्तों से पैदा हुए बच्चे भी बड़े होकर परेशानियां झेलते हैं। जब उनके पेरेंट्स अलग हो जाते हैं तो बच्चे समाज पर बोझ बन जाते हैं। कई हालात में वे गलत संगत में पड़ जाते हैं और देश अच्छे नागरिक पाने से रह जाता है। अगर ऐसे रिश्तों से बच्ची पैदा होती है तो और भी कई बुरे प्रभाव पड़ते हैं, जिन्हें विस्तार से बताने से जरूरत नहीं है। कोर्ट में आए दिन ऐसे मामले आते रहते हैं।


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